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Showing posts from March, 2024

ज्योतिष में ईश्वर प्राप्ति के योग

मानव जीवन का परम लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति या आत्मसाक्षात्कार है। हालांकि यह एक दुर्लभ और कठिन प्रक्रिया है, लेकिन ज्योतिष शास्त्र हमें कुछ ऐसे योग बताता है जो इस दिव्य लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक होते हैं। ये योग व्यक्ति की जन्मकुंडली में विद्यमान होते हैं और आध्यात्मिक यात्रा के लिए प्रेरणा देते हैं। ब्रह्म योग: यह योग तब बनता है जब शुक्र और बुध एक ही राशि में स्थित हों। इससे व्यक्ति में ज्ञान और विवेक की प्रबल भावना जागृत होती है, जो आध्यात्मिक साधना के लिए अनुकूल होती है। ईश्वर योग: यह योग तब बनता है जब सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में स्थित हों। इससे व्यक्ति में दिव्य प्रकाश के प्रति आकर्षण बढ़ता है और वह आध्यात्मिक अनुभूतियों के लिए तरसता है। योगी योग: यह योग तब बनता है जब शुक्र और बुध एक दूसरे के साथ योग बनाते हैं और साथ ही वे किसी भी ग्रह के साथ युति में न हों। इससे व्यक्ति में संयम और एकाग्रता आती है, जो साधना के लिए महत्वपूर्ण होती है। विश्वादित्य योग: यह योग तब बनता है जब सूर्य और चंद्रमा एक दूसरे के साथ योग बनाते हैं। इससे व्यक्ति में ब्रह्मज्ञान की खोज की इच्...

कृष्णमूर्ति पद्धति

कृष्णमूर्ति पद्धति एक प्राचीन ज्योतिष विधि है जिसका प्रयोग कृष्णमूर्ति पद्धति से फलकथन के लिए किया जाता है। इस पद्धति में ग्रहों की स्थिति, नक्षत्रों की गणना और विशेष संख्याओं का मिलान कर भविष्य के बारे में भविष्यवाणी की जाती है। यह विधि अपने सटीक परिणामों के लिए प्रसिद्ध है। कृष्णमूर्ति पद्धति का नाम स्वयं महर्षि कृष्णमूर्ति के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने इस विधि को विकसित किया था। महर्षि ने अपने दीर्घकालिक अनुभव और गहरी बुद्धि के आधार पर इस पद्धति को सिद्ध किया था। वे अंतरिक्ष और ग्रहों के गतिविधि के प्रति गहरी समझ रखते थे। इस पद्धति में, व्यक्ति का जन्मपत्रिका अध्ययन किया जाता है और फिर विभिन्न ग्रहों की गति, नक्षत्रों की स्थिति आदि पर विचार किया जाता है। इन विभिन्न तत्वों का गणितीय मिलान किया जाता है और सटीक गणनाओं के आधार पर भविष्य की घटनाओं का अनुमान लगाया जाता है। कृष्णमूर्ति पद्धति सिर्फ भविष्य की घटनाओं की भविष्यवाणी नहीं करती बल्कि जीवन की विभिन्न चुनौतियों और उनके समाधानों के बारे में भी बताती है। इससे व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। ...

कुंडली में कारक, अकारक और मारक ग्रह

ज्योतिष शास्त्र में, ग्रहों को उनके प्रभाव के आधार पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है - कारक ग्रह, अकारक ग्रह और मारक ग्रह। यहां हम समझेंगे कि कारक ग्रह किसे कहते हैं और इन तीनों प्रकारों के बीच का अंतर। कारक ग्रह किसे कहते हैं? कारक ग्रह वे ग्रह होते हैं जो किसी व्यक्ति की कुंडली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनकी जीवन की विभिन्न घटनाओं को प्रभावित करते हैं। ये ग्रह व्यक्ति के जीवन के लिए शुभ परिणाम लाते हैं और उनकी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करते हैं। कारक ग्रह सौभाग्य, धन, संतान, शिक्षा, करियर आदि जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को संचालित करते हैं। अकारक ग्रह अकारक ग्रह वे होते हैं जो न तो शुभ होते हैं और न ही अशुभ। ये ग्रह व्यक्ति के जीवन में न्यूटलिटी लाते हैं और उनके प्रभाव को कम करते हैं। हालांकि, अकारक ग्रहों के उपयुक्त योग और गोचर स्थितियों में, वे शुभ परिणाम दे सकते हैं। मारक ग्रह जैसा कि नाम से पता चलता है, मारक ग्रह व्यक्ति के जीवन में विघ्न डालते हैं और कष्ट पहुंचाते हैं। ये ग्रह नकारात्मक शक्तियों को प्रतिनिधित्व करते हैं और व्यक्ति के लिए बाधाएं ...

शनि और करियर

शनि और करियर: शनि ग्रह से संबंधित व्यवसाय शनि को ज्योतिष शास्त्र में परिश्रम, अनुशासन और धैर्य का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, शनि ग्रह से जुड़े व्यवसाय में मेहनत, लगन और धैर्य की आवश्यकता होती है। कुछ व्यवसाय जिन्हें शनि से संबंधित माना जाता है, वे हैं: खनन उद्योग: खनन शनि की प्रकृति से मेल खाता है क्योंकि यह धरती की गहराइयों से निकटता से जुड़ा है। यह परिश्रमी और कठोर परिश्रम की मांग करता है। रियल एस्टेट और निर्माण: भूमि और संपत्ति का व्यवसाय शनि से संबंधित है। यह धीरज, दृढ़ता और लंबी अवधि की योजना की मांग करता है। सरकारी नौकरियां: शासन और प्रशासन से जुड़े व्यवसाय शनि के अनुकूल माने जाते हैं। यहां अनुशासन और नियमों का पालन करना महत्वपूर्ण है। कृषि और उद्योग: शनि के अधीन आने वाले क्षेत्र हैं कृषि, उद्योग और मशीनरी क्योंकि इनमें कड़ी मेहनत और लगन की आवश्यकता होती है। सुरक्षा और सैन्य बल: शनि से जुड़े व्यवसाय में सुरक्षा और सैन्य बल भी शामिल हैं, जहां अनुशासन और कठोर प्रशिक्षण अनिवार्य है। हालांकि, शनि ग्रह का प्रभाव व्यक्ति की कुंडली और अन्य ग्रहों की स्थ...

रोजगार एवं धन प्राप्ति के सरल उपाय

रोजगार एवं धन प्राप्ति के सरल उपाय अपना व्यवसाय खड़ा करना और उसे सफलतापूर्वक चलाना आसान नहीं होता। लेकिन कुछ ऐसे रोजगार चलाने के उपाय हैं जिनसे इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। सर्वप्रथम, अपने व्यवसाय के लिए एक स्पष्ट योजना बनाएं। अपने लक्ष्य और उद्देश्यों को परिभाषित करें और उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदमों की रूपरेखा तैयार करें। एक अच्छी व्यावसायिक योजना आपको दिशा प्रदान करेगी और संसाधनों के उचित उपयोग में मदद करेगी। दूसरा, अपने ग्राहकों की जरूरतों और चाहतों को समझें। उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप अपने उत्पादों या सेवाओं को ढालें। ग्राहकों से नियमित प्रतिक्रिया लें और उनकी प्रतिक्रियाओं के आधार पर आवश्यक बदलाव करें। तीसरा, अपनी मार्केटिंग रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करें। सोशल मीडिया, विज्ञापन और मुंह-मुहाना प्रचार के माध्यम से अपने ब्रांड की पहुंच बढ़ाएं। इससे आपके उत्पादों और सेवाओं के बारे में जागरूकता बढ़ेगी। चौथा, अपने व्यवसाय में नवीनता और प्रौद्योगिकी को शामिल करें। समय के साथ बदलते ट्रेंड और तकनीकों पर कदम रखें। यह आपके व्यवसाय को अग्रणी बनाए रखन...

कारकांश लग्न द्वारा फलकथन

कारकांश कुंडली क्या होती है? कारकांश कुंडली एक विशेष प्रकार की जन्मकुंडली है जिसमें कारकांश लग्न के आधार पर फलकथन किया जाता है। यह एक पुरानी परंपरा है जो वैदिक ज्योतिष शास्त्र से ली गई है। कारकांश लग्न वह लग्न बिंदु होता है जिससे सभी ग्रहों के कारक अर्थात् फलादेश निर्धारित किए जाते हैं। कारकांश लग्न द्वारा फलकथन कारकांश लग्न द्वारा फलकथन एक अनूठा और गहन विधि है। इसमें सबसे पहले कारकांश लग्न की गणना की जाती है। यह मूल लग्न से कुछ अंश आगे या पीछे होता है। फिर इस कारकांश लग्न से सभी ग्रहों के कारक बनाए जाते हैं। इन कारकांशों पर विशेष महत्व दिया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कारकांश लग्न मिथुन राशि में है तो वृषभ राशि से पुत्र कारक बनेगा, मिथुन से धन कारक और इसी प्रकार आगे बढ़ते हुए। इन कारकों के आधार पर व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पक्षों जैसे संतान, धन, वैवाहिक जीवन आदि का फलादेश किया जाता है। इस प्रकार कारकांश लग्न फलित कुंडली कहीं अधिक गहन और विस्तृत होती है। इसमें व्यक्ति के भाग्य की सटीक भविष्यवाणी की जाती है। हालांकि यह जटिल विधि है और इसके लिए गहन ज्ञान एवं अनुभव क...

भयभीत न हों अष्टम चंद्र से

हिंदू जन्म कुंडली में अष्टम भाव का विशेष महत्व है। यह मृत्यु, आत्मिक शक्तियों और गहन बदलावों से संबंधित माना जाता है। इस भाव में चंद्र की स्थिति व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। हालांकि, इसे सावधानीपूर्वक समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि गलतफहमी से भय और चिंता का माहौल बन सकता है। " भयभीत न हों अष्टम चंद्र से " अष्टम भाव में चंद्र ( अष्टम भाव में चंद्र और मृत्यु ) की उपस्थिति को अक्सर दुर्भाग्यपूर्ण और खतरनाक माना जाता है। लेकिन यह सिर्फ एक पुरानी धारणा है। वास्तव में, यह स्थिति व्यक्ति को गहन आध्यात्मिक अनुभव और आंतरिक शक्ति प्रदान करती है। ऐसे लोग अपने आप को बदलने और नए सिरे से शुरू करने की क्षमता रखते हैं। उनमें दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता होती है। हालांकि, इस स्थिति से जुड़े कुछ संघर्ष और चुनौतियां भी हो सकती हैं। लेकिन यदि व्यक्ति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाता है और आंतरिक शक्ति पर विश्वास करता है, तो वह इन चुनौतियों पर काबू पा सकता है। आत्म-विश्वास और धैर्य बनाए रखना महत्वपूर्ण है। निष्कर्षतः, अष्टम चंद्र से भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह केवल एक ...

श्री मंगला गौरी मंत्र

मंगला गौरी मंत्र एक प्राचीन और शक्तिशाली मंत्र है जिसका उच्चारण महिलाओं द्वारा विशेष अवसरों पर किया जाता है। यह मंत्र माता परमेश्वरी की विभिन्न शक्तियों को आह्वान करता है और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता करता है। मंगला गौरी मंत्र में कहा गया है: "ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः गर्भगेहे मनोरमा यत्र नारी सुरक्षिता। तस्यै मंगलगौर्यै नमः॥" इस मंत्र का अर्थ है - "हे चामुण्डा देवी, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं। हे गर्भगेह में निवास करने वाली मनोरम देवी, जहां महिलाएं सुरक्षित रहती हैं, उस मंगला गौरी को मेरा प्रणाम।" मंगला गौरी मंत्र को विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं द्वारा जपा जाता है ताकि प्रसव के समय सुरक्षा और आशीर्वाद मिल सके। इसके अलावा, विवाहित महिलाएं भी इस मंत्र का जाप करती हैं ताकि उनके परिवार में खुशहाली और समृद्धि आए। कई लोग मंगला गौरी मंत्र को एक दिन में 108 बार जपने की सिफारिश करते हैं। इसे जपने से पहले स्नान करना और पवित्र वस्त्र पहनना महत्वपूर्ण माना जाता है। मंत्र जाप के दौरान, एक दीपक जलाया जाता है और माला का उपयोग क...

जन्मकालिक संस्कार

हिन्दू धर्म में जन्मकालिक संस्कारों का महत्वपूर्ण स्थान है। इनमें से एक है " बच्चे की छठी पूजन विधि "। यह एक प्राचीन परंपरा है जिसमें माता-पिता अपने नवजात शिशु की लंबी आयु और कल्याण की कामना करते हैं। इस विधि में, जन्म के छठे दिन माता-पिता पूजा करते हैं और देवताओं से बच्चे के स्वास्थ्य और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। पूजा के दौरान, माता बच्चे को गोद में लेती है और पिता मंत्रोच्चार करते हुए तिलक लगाते हैं। इसके बाद, बच्चे का नाम रखा जाता है और उसे मिठाइयां खिलाई जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में, माता भी सात दिनों तक पवित्र रहती है और पूजा में भाग लेती है। इस अवसर पर, रिश्तेदारों और दोस्तों को भी आमंत्रित किया जाता है और उन्हें प्रसाद वितरित किया जाता है। "बच्चे की छठी पूजन विधि" न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह नए माता-पिता और उनके परिवार के लिए एक खुशी का अवसर भी है। इससे बच्चे को आशीर्वाद मिलता है और उसके भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी जाती हैं। Read More: https://www.futuresamachar.com/hi/birth-sanskar-for-child-4777

लक्ष्मी प्राप्त करने के ५१ अचूक उपाय

  लक्ष्मी भगवती धन और समृद्धि की देवी हैं। उनकी कृपा से ही व्यक्ति धन-दौलत एवं सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकता है।  लक्ष्मी प्राप्ति के 151 सरल उपाय  में से 51 उपाय हम आपको बताते हैं। यहाँ लक्ष्मी प्राप्त करने के ५१ अचूक उपाय दिए गए हैं: १. प्रतिदिन लक्ष्मी जी की आराधना करें और उनके भजन गाएं। २. शुक्रवार को उपवास रखें और शाम को लक्ष्मी पूजा करें। ३. घर में पीपल का पेड़ लगाएं और उसकी नित्य सेवा करें। ४. मंदिर में लक्ष्मी जी के चरणों में शुद्ध घी का दीपक जलाएं। ५. शुद्ध पीतल के बर्तनों में भोजन करें और उनकी देखभाल करें। ६. गरीबों को नित्य भोजन विश्वास से विलेपन करें। ७. अपने घर में कमल के फूलों को रखें। ८. किसी भी धनराशि को अपवित्र न होने दें। ९. बीज मंत्र "श्री मणै नम:" का जाप करें। १०. दिवाली पर लक्ष्मी पूजन अवश्य करें। इसी तरह आप इस लेख में  लक्ष्मी प्राप्त करने के ५१ अचूक उपायों  से अवगत हो सकते हैं। इन सरल उपायों को करने से निश्चित रूप से लक्ष्मी जी की कृपा आप पर बनी रहेगी। Read More:  https://www.futuresamachar.com/hi/51-ways-to-get-lakshmi-4767

शारीरिक लक्षणों व राजचिन्हों से जाने राजयोग

  राजयोग के लक्षण : शरीर व व्यक्तित्व में अद्भुत परिवर्तन राजयोग एक प्राचीन साधना पद्धति है जिसके अभ्यास से मनुष्य अपने अंदर के गुप्त शक्तियों को जागृत कर सकता है। इस योग विद्या के साधकों में कुछ विशिष्ट शारीरिक और मानसिक लक्षण देखे जाते हैं जिन्हें राजयोग के लक्षण कहा जाता है। शारीरिक लक्षण: मुखमंडल पर एक विशिष्ट चमक व प्रकाश - राजयोगियों के चेहरे पर एक अलौकिक चमक और आभा नजर आती है जो उनकी आंतरिक शुद्धता और साधना की गहराई को दर्शाती है। आँखों में अद्वितीय गहराई - उनकी आँखों में एक विशेष गहराई और गंभीरता होती है जो उनके मानसिक शांति और समाधि की स्थिति को प्रदर्शित करती है। स्वस्थ और युवा शरीर - राजयोगियों के शरीर में एक विशेष स्वस्थता और जवानी देखने को मिलती है, जो उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का परिचायक है। व्यक्तित्व लक्षण: शांत और संयमित व्यवहार - राजयोगी सदा शांत, संयमित और गंभीर व्यवहार रखते हैं। उनके चेहरे पर सदा एक अनुग्रह और करुणा की भावना विद्यमान रहती है। सहज बोलचाल और व्यवहार - राजयोगियों की भाषा और आचरण सहज, सरल और प्राकृतिक होते हैं। उनमें किसी प्रक...

श्री बगलामुखी स्तोत्र-अर्थ एवं महत्व

श्री बगलामुखी स्तोत्र हिंदी में : दिव्य शक्तियों से संपन्न होने का मार्ग सनातन हिंदू धर्म में मंत्रों और स्तोत्रों का विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक है ' श्री बगलामुखी स्तोत्र '। यह स्तोत्र देवी बगलामुखी की वंदना करता है, जो मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से एक हैं। बगलामुखी शब्द का अर्थ है 'बगली की तरह मुँह वाली'। इस स्तोत्र में बगलामुखी की विभिन्न शक्तियों और रूपों को वर्णित किया गया है। कहा जाता है कि इस स्तोत्र के पाठ से साधक को सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और उसके अंदर दिव्य शक्तियाँ जागृत होती हैं। साथ ही उसकी बुद्धि तेज होती है और वह संसार के मोह-माया से मुक्त हो जाता है। बगलामुखी स्तोत्र कुल 34 श्लोकों में विभाजित है। इसके प्रारंभिक श्लोकों में देवी की स्तुति की गई है और उनके विभिन्न रूपों एवं गुणों का वर्णन किया गया है। कुछ श्लोक मन्त्रात्मक हैं जिनका जाप किया जाता है। अंतिम श्लोकों में साधक बगलामुखी से विभिन्न वरदान माँगता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का निष्ठापूर्वक पाठ करता है, उसे सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। ज्योतिष...

श्री हरसू ब्रह्म धाम

    हरसू ब्रह्म धाम: आध्यात्मिक अनुभूति का अद्वितीय केंद्र राजस्थान की पवित्र भूमि पर स्थित 'श्री हरसू ब्रह्म धाम' ( shri harsu brahm dham ) एक ऐसा पुनीत स्थल है, जहां आध्यात्मिक यात्रा का एहसास सर्वत्र व्याप्त है। इस धर्मस्थली का नाम ही अपने आप में एक गहरा अर्थ समेटे हुए है - 'हरसू' से तात्पर्य दिव्य ज्ञानी ब्रह्म मुनि हरसू से है, जबकि 'ब्रह्म' शब्द परब्रह्म की ओर संकेत करता है। यहां प्रवेश करते ही श्रद्धालुओं के चित्त में एक अपूर्व शांति और भक्ति का संचार होता है। मंदिर परिसर की भव्य और कलात्मक वास्तुकला मानो आगंतुकों को आध्यात्मिक अनुभूति के गगनचुंबी शिखरों पर ले जाती है। प्रमुख मंदिर, जो एक बेजोड़ स्थापत्य शैली का नमूना है, यहां की केंद्रीय आकर्षण बिंदु है, जहां भक्तगण विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों के समक्ष प्रार्थनाएं करते हैं। श्री हरसू ब्रह्म धाम  की विशेषता केवल पूजा-अर्चना तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यहां ब्रह्म मुनि हरसू के गहन सिद्धांतों और आध्यात्मिक ज्ञान का भी प्रचार-प्रसार होता है। आश्रम में नियमित रूप से संत-सत्संग, प्रवचन और आध्यात्मिक कार्यश...

Significance of Good Friday 2024

  Good Friday holds immense significance in the year 2024, as it commemorates the crucifixion of Jesus Christ and his ultimate sacrifice for humanity's sins. This solemn day is observed by Christians worldwide, reflecting on the profound impact of Jesus' death on the cross. It serves as a reminder of the immense love and mercy that Jesus displayed by willingly laying down his life for the salvation of mankind. Good Friday is a time for believers to reflect on their own lives, repentance, and gratitude for the redemption offered through Jesus' sacrifice. It is a day of deep introspection, prayer, and solemnity, as Christians contemplate the immense suffering endured by Jesus and the hope that his resurrection on Easter Sunday brings. The significance of Good Friday in 2024 lies in its ability to inspire believers to renew their faith, seek forgiveness, and embrace the message of love and redemption that Jesus' crucifixion represents. Read more:  https://win2brain.com/re...